(संजीव ठाकुर) नई दिल्ली। हाल ही में Disaster Management Act Amendment Petition in Supreme Court को लेकर बड़ी जनहित याचिका दायर हुई है। याचिकाकर्ता श्री नितीश कुमार, डेटा साइंटिस्ट और राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा स्कॉलर ने कई राज्यों और दलों को प्रतिवादी बनाया। इनमें बिहार, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC), भारतीय जनता पार्टी (BJP) और जामुई के जिला मजिस्ट्रेट शामिल हैं।
याचिका में गंभीर आरोप
याचिका में दावा किया गया कि बाढ़, पुल ढहने और भूस्खलन जैसी आपदाओं को सरकारों ने भ्रष्टाचार का बाजार बना दिया है। इसके अलावा, राहत के नाम पर दशकों से चला आ रहा घोटाला अब लाखों करोड़ तक पहुँच चुका है। नतीजतन, 77,000 करोड़ रुपये से अधिक का हिसाब गायब है। साथ ही, 49,000 से ज्यादा उपयोगिता प्रमाणपत्र आज तक लंबित हैं।
मुख्य आरोप
- एजेंसियों की चुप्पी: CBI, ED और IB दशकों तक आंख मूंदे बैठे रहे।
 - NDMA खोखला निकला: वैज्ञानिकों और सुरक्षा ऑडिट के बिना यह केवल वैधानिक कवच साबित हुआ।
 - 2025 का संशोधन: राहत पाने के अधिकार खत्म कर दिए गए। इसलिए, अधिकारियों की जवाबदेही केवल 10,000 रुपये के जुर्माने तक सीमित रह गई।
 - अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन: इसी बीच, याचिका ने यह भी आरोप लगाया कि सेंडाई फ्रेमवर्क (2015–2030), ICCPR और UDHR की अनदेखी की गई।
 - संविधान का मजाक: अंततः अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 32 कमजोर कर दिए गए।
 
याचिकाकर्ता का बयान
याचिकाकर्ता ने कहा –
“दो दशकों से सरकारें राहत के नाम पर लूट रही हैं। लाखों करोड़ गायब हो गए। फिर भी CBI, ED और IB ने कुछ नहीं देखा। इसलिए, यह केवल लापरवाही नहीं बल्कि कानून में लिखा हुआ घोटाला है। हर सत्ताधारी पार्टी ने इस पर हस्ताक्षर किए। यह मंडाक्राइम है – भारत के लोगों के खिलाफ संवैधानिक अपराध। अब बहानों का समय खत्म हो चुका है।”
विपक्ष पर तीखा सवाल
इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने विपक्ष की खामोशी पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा –
“नेता विपक्ष राहुल गांधी इस मामले पर चुप क्यों हैं? जबकि तेजस्वी यादव, अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी जैसे नेताओं ने भी अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। जब यह मामला करोड़ों लोगों की जान और अधिकारों से जुड़ा है, तो पूरे विपक्ष की चुप्पी चौंकाने वाली और संदिग्ध है।”
विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित रहने के बावजूद यदि विपक्ष ने मुखर रुख नहीं अपनाया, तो लोकतांत्रिक जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े होंगे। अंततः, यह मामला केवल न्यायिक प्रक्रिया ही नहीं बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों की भी परीक्षा है।
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