(संजीव ठाकुर)
पहली बार टूटी सदियों पुरानी परंपरा
Manimahesh Dal Todne Ki Rasam Incomplete for First Time Due to Natural Disaster
हिमाचल प्रदेश के चम्बा ज़िले में प्रकृति के प्रकोप ने न केवल जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया, बल्कि सदियों से चली आ रही आस्था की परंपरा को भी प्रभावित किया। इस बार की श्री मणिमहेश यात्रा इतिहास में दर्ज हो गई, क्योंकि पहली बार पवित्र ‘डल तोड़ने’ की रस्म अधूरी रह गई।
The sacred Manimahesh Dal Todne Ki Rasam remained incomplete this year for the first time in history. Due to landslides and floods, devotees and Shiv Chele had to return without completing the ritual.
शिव चेलों का जत्था लौटा खाली हाथ
हर साल राधा अष्टमी के पावन अवसर पर संचुई गांव के शिव चेले (भगवान शिव के विशेष उपासक) मणिमहेश डल झील तक पहुंचकर उसे तोड़ने की परंपरा निभाते हैं। इस बार भी वे पूरे हौसले और आस्था के साथ यात्रा पर निकले थे।
लेकिन जैसे ही उनका जत्था मुख्य पड़ाव हड़सर पहुंचा, तो रास्ते में भूस्खलन, बाढ़ और मलबे ने उनका मार्ग रोक दिया। जगह-जगह बड़े पत्थर और भारी बरसात ने स्थिति को और खतरनाक बना दिया। मजबूरन उन्हें वापसी करनी पड़ी।
Why Manimahesh Dal Todne Ki Rasam Remained Incomplete This Year
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह पहला मौका है जब ‘डल तोड़ने’ की रस्म अधूरी रह गई। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि माता भ्रामणी देवी ने पहले ही संकेत दिया था कि इस बार डल टूटेगा नहीं। उनका मानना है कि देवी का यह संदेश आने वाले बड़े संकट की चेतावनी था, जो अब प्रकृति के कहर के रूप में सबके सामने आ चुका है।
आस्था और पर्यावरण संकट का टकराव
श्रद्धालु इस घटना को केवल प्राकृतिक आपदा नहीं मान रहे, बल्कि इसे इंसानों के कुकर्मों और पर्यावरणीय लापरवाही का परिणाम मानते हैं। उनका कहना है कि जब तक इंसान प्रकृति का सम्मान नहीं करेगा, तब तक आस्था की राह बार-बार अवरुद्ध होती रहेगी।
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