नोएडा, सेक्टर 132 –
शहर की चकाचौंध और भीड़भाड़ के बीच एक नंदी बैल कई दिनों तक मौत से लड़ता रहा। उसके टूटे सींग से खून बहता रहा, सिर पर गहरी चोट रिसती रही, और खुले घाव में कीड़े तक लग गए। दर्द से कराहते उस नंदी बैल की आँखें हर गुजरते इंसान से जैसे मदद की भीख माँग रही थीं।
लेकिन अफ़सोस, नोएडा की व्यस्त सड़कों पर कोई भी रुककर उसे सहारा देने वाला नहीं मिला। लोग आते-जाते रहे, कारें तेज़ी से निकलती रहीं, और घायल नंदी बैल अकेले मौत की प्रतीक्षा करता रहा। यह दृश्य सिर्फ़ एक जानवर की पीड़ा नहीं, बल्कि हमारी मानवता और आस्था की बेरुख़ी की तस्वीर है।
और फिर, जब सबने मुँह मोड़ लिया – एक उम्मीद की किरण बनी। बिहार के एक युवक और पत्रकार संजीव ठाकुर ने आगे आकर वह किया, जो पूरी भीड़ नहीं कर सकी। उन्होंने न केवल घायल नंदी बैल को देखा बल्कि तुरंत मदद का इंतज़ाम किया और उसकी जान बचाई।
📍 स्थान: Adobe Building, Sector 132, Noida – 201304, Uttar Pradesh
यह घटना हमें आईना दिखाती है। जिस देश में नंदी बैल को भगवान शिव का वाहन और पूजनीय माना जाता है, उसी देश में उसकी तड़प को देखकर भी अगर हमारी संवेदनाएँ मर जाएँ, तो क्या हमारी इंसानियत अब सिर्फ़ शब्दों में रह गई है?
आज यह नंदी बैल बच गया, लेकिन यह सवाल अब भी ज़िंदा है – क्या हम सच में ज़िंदा हैं, अगर किसी तड़पते प्राणी की पुकार नहीं सुन सकते?
यह सिर्फ़ एक न्यूज़ नहीं, बल्कि आस्था और इंसानियत की आख़िरी साँसों का सवाल है।
यह घटना क्यों महत्वपूर्ण है?
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नंदी बैल को हिंदू धर्म में भगवान शिव का वाहन और पूजनीय माना जाता है।
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नोएडा की व्यस्त सड़कों पर उसकी तड़प देखकर भी कोई आगे नहीं आया।
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समाज की बेरुख़ी के बीच बिहार के युवक और संजीव ठाकुर ने इंसानियत को जिंदा रखा।
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यह घटना हमें याद दिलाती है कि करुणा सिर्फ़ शब्दों से नहीं, बल्कि कर्म से साबित होती है।
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