देवभूमि हिमाचल खतरे में! प्राकृतिक आपदा या मानव की लापरवाही?

Himachal natural disaster – landslides, floods and Supreme Court warning
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✍️ By Sanjeev Thakur

हिमाचल प्रदेश—जिसे देश “देवभूमि” कहकर पुकारता है—आज विनाश के कगार पर है।
बार-बार क्लाउडबर्स्ट, भूस्खलन, फ्लैश फ्लड और मकानों का ढहना अब सामान्य बन चुका है।
👉 इसलिए सवाल उठता है—क्या यह केवल प्रकृति का कहर है, या फिर मानव द्वारा की गई अंधाधुंध छेड़छाड़ का नतीजा?

विकास या विनाश?

पिछले 10 सालों में हिमाचल के पहाड़ों को ऐसे काटा गया जैसे यह कोई “खदान” हो।

  • सैकड़ों हाइड्रो प्रोजेक्ट्स

  • चौड़ी सड़कें

  • पहाड़ चीरती सुरंगें

  • नदी किनारे होटल और मल्टी-स्टोरी इमारतें

इन सबने हिमाचल की वहन क्षमता (carrying capacity) को तोड़ दिया।
नतीजतन, थोड़ी सी बारिश भी अब मौत बनकर बरसती है।

 सुप्रीम कोर्ट का सख्त बयान

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी—

“अगर हालात ऐसे ही रहे तो हिमाचल मानचित्र से मिट सकता है। यह विनाश प्रकृति नहीं, इंसान की गलती है।”

दरअसल, कोर्ट ने साफ कहा कि सड़क चौड़ीकरण, हाइड्रो प्रोजेक्ट्स, जंगलों की कटाई और अनियंत्रित पर्यटन ही असली कारण हैं।

 चौंकाने वाले आंकड़े (सिर्फ इस मानसून में)

  • 58 फ्लैश फ्लड

  • 30 क्लाउडबर्स्ट

  • 50 बड़े भू-स्खलन

  • 100+ मौतें

  • हज़ारों करोड़ का नुकसान

सबसे ज्यादा प्रभावित जिले—शिमला, कुल्लू, मंडी और चंबा।

कुल मिलाकर, ये आँकड़े साफ साबित करते हैं कि यह “नेचुरल डिज़ास्टर” नहीं बल्कि “मैन-मेड डिज़ास्टर” है।

   विशेषज्ञों की चेतावनी

भू-वैज्ञानिक और पर्यावरणविद लगातार कह रहे हैं:

✅ बड़े सड़क चौड़ीकरण प्रोजेक्ट रोके जाएं
✅ हाइड्रो प्रोजेक्ट्स पर तुरंत पुनर्विचार हो
✅ पर्यटन पर नियंत्रण हो
✅ रोपवे और इलेक्ट्रिक ट्रांसपोर्ट जैसे ग्रीन विकल्प अपनाए जाएं

इसके अलावा, विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर अभी भी न रोका गया तो हिमाचल का भविष्य और भी भयावह हो सकता है।

 आखिर जिम्मेदार कौन?

सरकारें—जिन्होंने राजस्व और राजनीति के लिए चेतावनियाँ अनसुनी कीं।
ठेकेदार लॉबी—जिन्होंने पहाड़ों की सीमाओं को तोड़ डाला।
हम सब—जो सुविधाओं के नाम पर प्रकृति से खिलवाड़ करते रहे।

हालांकि, अब दोषारोपण से ज़्यादा ज़रूरी है कि समाधान निकाला जाए।

   आगे की राह क्या?

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य दोनों से ठोस कार्ययोजना मांगी है।
इसीलिए अब समय है कि विकास की दिशा बदली जाए और उसे “सस्टेनेबल डेवलपमेंट” बनाया जाए—ताकि हिमाचल का अस्तित्व और देवभूमि की पहचान बची रहे।

   निष्कर्ष

यह विनाश भगवान की इच्छा नहीं, बल्कि मानव की गलती है।
आखिरकार, फैसला हमारे हाथ में है—क्या समय रहते सरकार और समाज जागेगा, या आने वाली पीढ़ियाँ सचमुच देवभूमि को मानचित्र से मिटते देखेंगी?

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