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शनि देव: महिमा,  मंत्र और पूजा विधि

 

शनि देव हिंदू धर्म में न्याय के देवता माने जाते हैं, जो कर्म के अनुसार फल देते हैं। इन्हें सूर्य देव के पुत्र और छाया माता के पुत्र के रूप में जाना जाता है। शनि देव की पूजा से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

चालीसा एक भक्ति भाव से भरा हुआ पथ है जो शनि देव की स्तुति और प्रार्थना के लिए पढ़ा जाता है। ये चालीसा हमें शनिदेव की कृपा और अनुग्रह प्राप्त करने में मदद करती है और जीवन की कथाएं और समस्याओं से निपटने की शक्ति प्रदान करती है।

शनि देव की पूजा विधि

आप  चालीसा को नियम से पढ़ सकते हैं और अपने जीवन में शनि देव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। चालीसा पढ़ने से पहले शुद्धि और एकता का ध्यान रखना जरूरी है।

शनि चालीसा का अध्ययन एक पवित्र और शक्तिशाली अनुभव हो सकता है। चालीसा पढ़ने से पहले, एक शुद्ध और संतुलित मानस में रहना जरूरी है। आप शनि देव की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठ कर, उन्हें फूल, धूप, या अन्य पूजा सामग्री समर्पित करके, चालीसा का पाठ कर सकते हैं।

शनि चालीसा के पढ़ने से आपको शनि देव की कृपा प्राप्त होती है, जो आपके जीवन की कथाएं और समस्याओं को काम करने में मदद करती है। चालीसा का नियम पथ आपके जीवन में साकारात्मकता और स्थिरता ला सकता है।

 

                               शनिदेव चालीसा यहाँ से प्रारम्भ है

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शनिदेव चालीसा यहाँ से प्रारम्भ है

 

चौपाई
जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥

परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥

कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥

सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥

पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥

राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥

बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥

रावण की गति-मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥

विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी-मीन कूद गई पानी॥

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥

पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥

 

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कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥

रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥

शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥

वाहन प्रभु के सात सुजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥

जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥

तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥

समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥

अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥

पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥

दोहा
पाठ शनिश्चर देव को, की हों ‘भक्त’ तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥

  shani dev mantra  (शनि देव के मंत्र  )

शनि गायत्री मंत्र

ॐ शनैश्चराय विदमहे छायापुत्राय धीमहि ।

शनि बीज मंत्र

ॐ प्रां प्रीं प्रों स: शनैश्चराय नमः ।।

शनि स्तोत्र

ॐ नीलांजन समाभासं रवि पुत्रं यमाग्रजम ।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम ।।

शनि पीड़ाहर स्तोत्र

सुर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्ष: शिवप्रिय: ।
दीर्घचार: प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनि: ।।
तन्नो मंद: प्रचोदयात ।।

शनिदेव को प्रसन्न करने वाले सरल मंत्र

ॐ शं शनैश्चराय नमः”
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः”
ॐ शन्नो देविर्भिष्ठयः आपो भवन्तु पीतये। सय्योंरभीस्रवन्तुनः।।

शनि का पौराणिक मंत्र

ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।

सामान्य मंत्र

ॐ शं शनैश्चराय नमः।

शनि का वैदिक मंत्र

ऊँ शन्नोदेवीर- भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।

 

श्री श्री दुर्गा चालीसा यहाँ से पढ़े

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